चंद्र प्रकाश शर्मा, देवास। साहित्य, कला और अध्यात्म की नगरी देवास मप्र का प्रमुख स्थल है। किवदंती है कि दो देवियों के वास के कारण ही इस शहर नाम देवास पड़ा, वहीं कुछ इतिहासविद कहते हैं कि दिवासा नामक अंग्रेज व्यापारी के यहां आगमन के चलते इसका नाम देवास हुआ, लेकिन धार्मिक आस्था ने देवियों के वास को ही देवास नाम का इतिहास माना।
मालवा क्षेत्र में इंदौर और उज्जैन के करीब बसे देवास में वैसे तो कई दर्शनीय और ऐतिहासिक स्थल हैं, लेकिन सबसे प्रमुख है माता टेकरी। यहां मां तुलजा भवानी (बड़ी माता) व चामुंडा मां (छोटी माता) विराजमान हैं। आपको बताते हैं माता टेकरी का इतिहास और यहां पहुंचने के मार्ग के बारे में...।
शहर के युवा लेखक अमितराव पवार कहते हैं कि देवास की माता टेकरी पर रक्तपीठ माना गया है। मान्यता है कि सती के रक्त की बूंदे यहां गिरी थीं। इस स्थान पर रक्तवाहिनी चामुंडा माता पहाड़ों के बीच से प्रकट हुईं तथा माता तुलजा भवानी स्वयंभू अवतरित हुईं, जिनके शरीर का आधा भाग पाताल में है। टेकरी पर कालिका माता, अन्नपूर्णा माता, खो-खो माता, अष्टभुजा माता, दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर, कुबेर देव के साथ ही शिवलिंग व भैरव मंदिर भी है। यहां योगेंद्र शीलनाथजी महाराज की गुफा भी है।
टेकरी के मंदिर नौवीं शताब्दी के आसपास का बताया जाता है। पवार के अनुसार मूर्धन्य शास्त्रीय संगीतज्ञ पं. कुमार गंधर्व ने माता टेकरी के नीचे ही अपना निवास बनाया था। गंभीर बीमारी से ग्रस्त होेने के बाद जब वे देवास आए तो यहां के वातावरण और आध्यात्मिक छटा ने उनका मन मोह लिया और यहीं बस गए। यहीं रहकर स्वस्थ हुए और संगीत में अमूल्य योगदान दिया।
पत्नी वसुंधरा कोमकली के साथ ही पुत्र मुकुल शिवपुत्र ने उनकी विरासत को आगे बढ़ाया। वर्तमान में उनकी पुत्री कलापिनी कोमकली माता-पिता की सांगीतिक पंरपरा को आगे बढा रहीं हैं। इनके अलावा उस्ताद रजबअली खां साहब, उस्ताद अमानत अली खां साहब, स्व. गणपतराव पवार साहब, राजकवि झोकरकर साहब जैसी विभूतियां यहां रह चुकीं हैं।
देवास में एक ही समय में दो पवार राज वंश के शासकों ने राज किया। देवास पूर्व में दो भागों में बंटा हुआ था। सीनियर तथा जूनियर। इस स्थान से नाथ परंपरा का इतिहास भी जुड़ा है। नागनाथ महाराज, गुरु गोरक्षनाथ महाराज, राजा भर्तृहरि, शीलनाथ महाराज, स्वामी विष्णु तीर्थ महाराज, शिवोम तीर्थ महाराज जैसे योगियों ने इसे साधना स्थली बनाया।
उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य भी यहां आते रहते थे। उन्होंने यहां पर निर्माण कार्य भी करवाया जिसमें मुख्यरूप से दीपमालिका है, जो हरसिद्धि मंदिर उज्जैन की तर्ज पर है। टेकरी पर पूर्व में एक गुप्त मार्ग हुआ करता था, जिसे सुरंग कहते थे। कहा जाता है कि यह सरुंग उज्जैन तक जाती थी। इसकी लंबाई लगभग 45 किलोमीटर मानी जाती है। इसका दूसरा सिरा उज्जैन स्थित भर्तृहरि गुफा के समीप निकलता है।
राजा भर्तृहरि इस सुरंग के रास्ते से माता की पूजा-अर्चना, ध्यान-तपस्या के लिए आते थे। वर्तमान में यहाँ जाने के लिए अलग-अलग रास्ते है। तीन सौ से अधिक सीढ़ियां चढ़कर माता के मंदिर पहुंचा जा सकता है। रपट मार्ग भी है। साथ ही रोप-वे की सुविधा से भी यहां पहुंचा जा सकता है।
एक किवदंती यह भी है कि तुलजा भवानी बड़ी और चामुंडा माता छोटी बहन है। इसलिए बड़ी माता और छोटी माता नाम भी प्रचलन में हैं। किसी बात पर दोनों बहनें एक-दूसरे से नाराज हुई। बात इतनी बढ़ी कि दोनों अपने स्थान छोड़ कर टेकरी से जाने लगी। बड़ी माता पाताल में समाने लगी, जबकि छोटी माता टेकरी उतरने लगी। स्थिति को संभालने के लिए भैरवजी और हनुमानजी उन्हें समझाने के लिए आए। तब तक बड़ी माताजी आधी पाताल में समा चुकी थी और छोटी माताजी बहुत नीचे उतर चुकी थी, लेकिन वे दोनों वहीं रुक गईं।
तुलजा भावनी माता को होलकर घराने की कुलदेवी और चामुंडा माता को पवार राजवंश की कुलदेवी माना जाता है। हालांकि मंदिर पुजारी कहते हैं कि पहले देवास में दो रियासतें थी। दोनों में पवार राजवंश का शासन था। एक जूनियर रियासत थी व दूसरी सीनियर। जूनियर रियासत के पवार शासकों की कुलदेवी तुलजा भवानी थीं, जबकि सीनियर रियासत की कुलदेवी चामुंडा माता हैं। वर्तमान में सीनियर रियासत की ओर से विधायक गायत्रीराजे पवार, पुत्र विक्रमसिंह पवार व उनका परिवार यहां निवासरत है।
माता टेकरी पर नाथ संप्रदाय परंपरा से पूजा की जाती है। मुकेश पुजारी बताते हैं कि तड़के 5 बजे तुलजा भवानी और चामुंडा माता मंदिरों के पट खुल जाते हैं। रात 11 बजे पट बंद होते हैं। इसके पहले शयन धूप दी जाती है। परंपरागत रूप से सुबह व शाम को आरती होती है। तुलजा भवानी माता मंदिर में सुबह 5.50 बजे व शाम को 6.10 बजे आरती होती है। चामुंडा माता मंदिर में सुबह 6.30 बजे व शाम को 6 बजे आरती होती है।
मौसम के अनुसार समय थोड़ा बदलता रहता है। नवरात्र में 24 घंटे माता का दरबार खुला रहता है। माता सती के ह्रदय भाग से रूधिर की बूंदे यहां गिरी थीं, जिस कारण इसे रक्तपीठ कहा जाता है और नवरात्र में लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। शारदीय नवरात्र में तो आंकड़ा दस लाख तक पहुंच जाता है। अष्टमी पर पवार राजपरिवार द्वारा हवन-पूजन किया जाता है।
हवाई मार्ग से देवास के सबसे समीप का हवाई अड्डा इंदौर है। इंदौर से देवास की दूरी मात्र 35 किमी है। रेल मार्ग से देवास जंक्शन से कई महत्वपूर्ण ट्रेनें गुजरती हैं। बसों की सुविधा भी है। देश के कई बड़े शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, जयपुर आदि से यहां की सीधी कनेक्टिविटी हैं। सड़क मार्ग से देवास शहर और टेकरी नेशनल हाईवे-3 एबी रोड पर स्थित है। मुंबई, भोपाल, अहमदाबाद, जयपुर, कोटा और दिल्ली जैसे शहरों से यहांसड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है।